जानियें कोहिनूर हीरे के बारें में (About Kohinoor Diamond)
'कोहिनूर' का अर्थ है- रोशनी का पर्वत(Mountain of Light) | 105.6-कैरट 21.6 ग्राम का यह हीरामाना जाता है कि कोहिनूर हीरे को करीब 800 साल पहले दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित कोल्लूर खान से निकाला गया था | सबसे पहले यह उस समय शासन कर रहे काकातिया वंश के पास था जिसे उसने एक मंदिर में एक देवी की मूर्ति में आंख की जगह जड़वाया था | फिर तमाम आक्रमणकारियों और शासकों के हाथों से होता हुआ वह सिख शासकों तक पहुंचा |
रंजीत सिंह पंजाब का महाराजा 1839 में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और पूरे ना हो सके। 2 9 मार्च, 184 9 को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग निम्न अनुसार था: "। कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा"
बाद में, डल्हौज़ी ने, 1851 में, महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट किये जाने के प्रबंध किये। तेरह वर्षीय, दलीप ने इंग्लैंड की यात्रा की, व उन्हें भेंट किया।
कोहिनूर के बारे में कहानियां :
कोहिनूर के जन्म की प्रमाणित जानकारी नहीं है पर कोहिनूर का पहला उल्लेख 3000 वर्ष पहले मिला था। इसका संबंध
श्री कृष्ण भगवान के काल से बताया जाता है। पुराणों के अनुसार स्वयंतक मणि ही बाद में कोहिनूर कहलायी। ये मणि सूर्य से कर्ण को फिर अर्जुन और युधिष्ठिर को मिली। फिर अशोक, हर्ष और चन्द्रगुप्त के हाथ यह मणि लगी। सन् 1306 में यह मणि सबसे पहले मालवा के महाराजा रामदेव के पास देखी गयी। मालवा के महाराजा को पराजित करके सुल्तान अलाउदीन खिलजी ने मणि पर कब्जा कर लिया। बाबर से पीढी दर पीढी यह बेमिसाल हीरा अंतिम मुगल बादशाह औरंगजेब को मिला। 'ज्वेल्स आफ बिट्रेन' का मानना है कि सन् 1655 के आसपास कोहिनूर का जन्म हिन्दुस्तान के गोलकुण्डा जिले की कोहिनूर खान से हुआ। तब हीरे का वजन था 787 कैरेट। इसे बतौर तोहफा खान मालिकों ने शाहजहां को दिया। सन् 1739 तक हीरा शाहजहां के पास रहा। फिर इसे नादिर शाह के पास रहा। इसकी चकाचौधं चमक देखकर ही नादिर शाह ने इसे कोहिनूर नाम दिया। कोहिनूर को रखने वाले आखिरी हिन्दुस्तानी पंजाब का रणजीत सिंह था। सन् 1849 मे पंजाब की सत्ता हथियाने के बाद कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लग गया। फिर सन् 1850 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने हीरा महारानी विक्टोरिया को भेंट किया। इंग्लैण्ड पंहुचते-पंहुचते कोहिनूर का वजन केवल 186 रह गया। महारानी विक्टोरिया के जौहरी प्रिंस एलवेट ने कोहिनूर की पुन: कटाई की और पॉलिश करवाई। सन् 1852 से आज तक कोहिनूर को वजन 105.6 ही रह गया है। 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित 'टावर आफ लंदन' संग्राहलय में प्रदर्शनी के लिये रखा गया है।
कोहिनूर और इसकी भारत वापसी :
ब्रिटेन ने कोहिनूर हीरा लौटाने की भारत की मांग को यह कह कर हर बार खारिज किया है कि स्थानीय कानून उसे ऐसा करने से रोकते हैं. ब्रिटेन में 1963 में बने ब्रिटिश म्यूजियम एक्ट के तहत राष्ट्रीय संग्रहालयों से वस्तुओं को हटाने की मनाही है. इस कानून में बदलाव किए बिना कोहिनूर लौटाने का रास्ता नहीं खुलेगा.
ब्रिटिश लॉ फर्म ने कोहिनूर को ब्रिटेन से वापस लेने की कानूनी कोशिश करने जा रहे इस समूह का नाम माउंटेन ऑफ लाइट ग्रुप बताया है. उनकी याचिका का आधार वह ब्रिटिश कानून है जिसमें संस्थानों को चुराई या लूटी गई कला को लौटाने का अधिकार मिला है.
कोहिनूर को लौटाने का अभियान चलाने वाले इस समूह के सदस्यों में कई उद्योगपति, अभिनेता और भूमिका चावला जैसी अभिनेत्री शामिल है. इसके अलावा ब्रिटेन में भारतीय मूल के लेबर पार्टी के सांसद कीथ वाज ने भी प्रमुखता से इस मांग का समर्थन किया था. हाल ही में भारतीय सांसद शशि थरूर के इस मांग को फिर से उठाने के बाद से कोहिनूर फिर चर्चा में है.
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